शुक्रवार, 30 अप्रैल 2021

बीहड़ में बाग़ी होते हैं ,चोर-डकैत पार्लियामेंट में होते हैं।

जश्न का दिन है, सत्ता वालों कुछ मीठा खिलाते क्यों नहीं?
गिनती बढ़ रही, आँखें चढ़ रही हैं,
तुम लखनऊ-बनारस में हो! कहकर मुस्कुराते क्यों नहीं?
आग लगाकर ख़ुद के गुलशन में,
ओ माली चोर-चोर चिल्लाते नहीं।

तुम आए नहीं, गँगा माँ ने बुलाया था,
तो बिखरे चेहरों को टटोलने आते क्यों नहीं?

तुम्हें सत्ता कौन देगा अबकी बार,
ये सोच मगरमच्छ के आँसू बहाते क्यों नहीं?
'कृष्णा'

गुरुवार, 29 अप्रैल 2021

लोकतन्त्र महान है।

भर गई श्मशान है, तड़प रहा इन्सान है।
लोकतंत्र महान है, लोकतंत्र महान है।

गँगा पुत्र बनकर आया, शासन में अपने हमें रुलाया।
विजय के लहर में, मौत का कहर बरसाया।
चुनाव हुए, भीड़ हटी, सम्मुख उनके मौत महज़ गिनती समान है।
भईया लोकतंत्र महान है, लोकतंत्र महान है।

सत्य, धर्म, सबों पर अनदेखी वार है,
ग़रीब सड़कों पर मेरे, शासन पर विजय सवार है।
समय बदलेगा, आवाज़े गूँजेंगी,
पास हमारे भी दो कान हैं।
लोकतंत्र महान है, लोकतंत्र महान है।

ढोंग रचाकर तिलक लगाया,
अक्षयवट रातों-रात गिराया।
समय आएगा, पास हमारे भी एक जुबान है।
लोकतंत्र महान है, लोकतंत्र महान है।
'कृष्णा'

बुधवार, 28 अप्रैल 2021

भीड़

भीड़ में कुचले जाने से बेहतर है
निकल जाना उस भीड़ से।
चाहे सड़क पर हो 
या दिल में बसे लोगों की।
'कृष्णा'

रविवार, 25 अप्रैल 2021

ये क्या लगा रक्खा है?

गुम-सुम, चुप-चुप क्यों रहते हो 'कृष्णा'
ये क्या लगा रक्खा है?

इलझे बालों, सुलझे ख़्यालों के भीतर, जो छुपी रहती थी मुस्कान,
आजकल कहाँ छिपा रक्खा है?

'कृष्णा' किस्मत के नविश्ते को मिटा दे कोई,
मुझको किस्मत के नविश्ते ने मिटा रक्खा है।

वो न समझे न सही, मेरा ख़ुदा तो समझेगा!
सब्र कर सब्र, तेरा काम हुआ रक्खा है।
'कृष्णा

गुरुवार, 22 अप्रैल 2021

आईंदा का ख़्वाब

दिन में ख़्वाब में आईंदा को क़रीब से देखा।
दरख़्त और इश्क़ को सभी घर से बिछुड़ते देखा।

चैन-ओ-अमन ढूँढना कोई मुश्किल न था,
लेकिन भागदौड़ के शहर में हर शख़्स को जलते देखा।

एक रहम दिल को रोते हुए देखा मैंने,
एक बेरहम को मदमस्त होते देखा।

रोटा हुआ रहम दिल एक ही सम्त में कब तक चलता,
मैंने रहम दिल को बेरहम बदलते देखा।

'कृष्णा' इस शहर में अब कोई ऐसी आँख नहीं,
गिरने वालों को यहाँ जिसने सँभलते देखा।
'कृष्णा'

पृथ्वी दिवस

पाला जिसने बड़े इत्मिनान से,
खोद कर उसे ही हम विज्ञान हो गए।

विकास-विकास करते-करते,
न जाने हम कब शैतान हो गए।

आज ज़िन्दगी उम्मीदों की रेत सी,
फिसलकर विज्ञान श्मशान हो गए।
'कृष्णा'

मेरी चाहत

2-4 और भी मकाँ थे उनके, मेरे दिल के अलावा,
लगता है कहीं और भी तबाह हुआ हूँ मैं।

मैं ख़ुद को मयस्सर था, मगर ख़ुद को मिल न सका मैं।

सूरज-चाँद के उफ्फुक़ होते हैं, मंज़िल नहीं,
सो उगता रहा,डूबता रहा, ढलता रहा मैं।

एक शख़्स था लेकिन कोई शख़्स न था मैं।
न आँखे मेरी खुली न उन आँखों में खुला मैं।

तलाश
तलाश
तलाश
हर किसी के तलाश में 'कृष्णा' कभी ख़ुद का न हुआ मैं।
'कृष्णा'

बुधवार, 21 अप्रैल 2021

रिश्तों से दूर होकर ज़िन्दा हूँ, सो मुजरिम हूँ।

रिश्तों से दूर होकर ज़िन्दा हूँ, सो मुजरिम हूँ।
काश! उसके लिए जीता, अपने लिए मर जाता।

कल सामने मंज़िल थी, पीछे मेरी आवाज़ें।
चलता तो तुमसे बिछड़ जाता,
रुकता तो मेरा सफ़र छूट जाता।

मैं नज़रबंद गलियों मुस्कुरा रहा था,
बिन मंज़िल पर सफ़र तो किए जा रहा था।

उन गलियों में ख़ुश भले न था 'कृष्णा' , था तो सही!
काश वहीं होता! , एक शाम तो बचा लेता!
एक शाम तो बचा लेता, एक रोज़ तो घर जाता!
'कृष्णा'

मंगलवार, 20 अप्रैल 2021

अनामिका

वो चाहता है हरपल साथ रहे मेरे,
दूर होने पर उसकी आँखें भर जाती है।
मतला ये नहीं कि मैं सँभल जाती हूँ बगैर उसके,
मेरे अनामिका में हर पल साथ चलता है वो।

घबराहट में मोहब्बत कर बैठे

4 बरस ग़म से तंग आकर,
इज़हार-ए-मसर्रत कर बैठे।

मशहूर थी मुस्कान मेरी,
दानिस्ता शरारत कर बैठे।

कोशिश तो बहुत की हमने 'कृष्णा' !
पाया न ग़म-ए-हस्ती से मफ़र,

वीरानी-ए-दिल चौखट पार होने लगी,
कि घबरा के सात्विक मोहब्बत कर बैठे।

#KKPBANARAS

रविवार, 11 अप्रैल 2021

बात मन की

जो राह तकूँ, कोई मिल ही जाएगा।
तुम ही बताओ, वह मुझे तुम्हारी तरह चाहेगा?

मेरे अलावा जरूर चाहतों की दरिया लेकर वो आएगा,
मगर तुम ही बताओ, मेरी बातें मेरी नज़रें वह कहाँ से लाएगा?
ज़िन्दगी बहुत लंबी है, कोई किराएदार कभी-भी दस्तक दे देगा,
मकान ख़ाली हुआ है, कोई तो जरूर आएगा।

फूलों पर लगे चारों ओर काँटों सा बिछा हूँ मैं,
तुम्हें छोड़ सबको चुभुंगा,
अगर तुम्हें भी मैं काँटा लगा तो यह काँटा और कहां जाएगा?

काँटों की थाल लिए दीवार बन बैठा हूँ,
देखता हूँ, वो आएगा तो किस रास्ते से आएगा!

साथ तुम्हारे, मैं भी मैं-सा था,
बाद तुम्हारे, ये काँटा मुझे ही चुभ जाएगा।
#Kkpbanaras

हिज्र

"कोई वस्तु हो, कोई शख़्स हो या कोई रिश्ता, जिससे हम आख़िरी बार मिलते हैं, उसे गले लगाना ज़रूरी होता है।"

"कृष्णा"

गुरुवार, 8 अप्रैल 2021

समय के घाव

समय सारे घाव भर देता है
दूसरों के नज़र में।
समय सींचते रहता है सब कुछ,
फिरसे ताज़ा होने के क्रम तक।
मैं तुम्हें नहीं समझ पाता,
समय मुझे नहीं समझ पाता।
मेरे राह पर सारे निर्मोही हैं, दोषी हैं और बहुत समझदार भी।
"कृष्णा"

डिअर दिसंबर

ये दिसंबर तो अब तलक रुका है तुमने ही साथ छोड़ दिया! शायद प्रेम का ताल सूख गया होगा पर वक़्त से पहले कैसे? हो सकता है अश्रुओं के ताल मौसमी रिवा...