इज़हार-ए-मसर्रत कर बैठे।
मशहूर थी मुस्कान मेरी,
दानिस्ता शरारत कर बैठे।
कोशिश तो बहुत की हमने 'कृष्णा' !
पाया न ग़म-ए-हस्ती से मफ़र,
वीरानी-ए-दिल चौखट पार होने लगी,
कि घबरा के सात्विक मोहब्बत कर बैठे।
#KKPBANARAS
सफ़र के रास्ते जितने कठिन होंगे, मंज़िल उतनी शानदार होगी। हाँ! रुकना मत, चलते रहो, चलते रहो मुसलसल। Twitter @kkpbanaras
ये दिसंबर तो अब तलक रुका है तुमने ही साथ छोड़ दिया! शायद प्रेम का ताल सूख गया होगा पर वक़्त से पहले कैसे? हो सकता है अश्रुओं के ताल मौसमी रिवा...
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