गुरुवार, 22 अप्रैल 2021

आईंदा का ख़्वाब

दिन में ख़्वाब में आईंदा को क़रीब से देखा।
दरख़्त और इश्क़ को सभी घर से बिछुड़ते देखा।

चैन-ओ-अमन ढूँढना कोई मुश्किल न था,
लेकिन भागदौड़ के शहर में हर शख़्स को जलते देखा।

एक रहम दिल को रोते हुए देखा मैंने,
एक बेरहम को मदमस्त होते देखा।

रोटा हुआ रहम दिल एक ही सम्त में कब तक चलता,
मैंने रहम दिल को बेरहम बदलते देखा।

'कृष्णा' इस शहर में अब कोई ऐसी आँख नहीं,
गिरने वालों को यहाँ जिसने सँभलते देखा।
'कृष्णा'

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