गुरुवार, 8 अप्रैल 2021

समय के घाव

समय सारे घाव भर देता है
दूसरों के नज़र में।
समय सींचते रहता है सब कुछ,
फिरसे ताज़ा होने के क्रम तक।
मैं तुम्हें नहीं समझ पाता,
समय मुझे नहीं समझ पाता।
मेरे राह पर सारे निर्मोही हैं, दोषी हैं और बहुत समझदार भी।
"कृष्णा"

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

डिअर दिसंबर

ये दिसंबर तो अब तलक रुका है तुमने ही साथ छोड़ दिया! शायद प्रेम का ताल सूख गया होगा पर वक़्त से पहले कैसे? हो सकता है अश्रुओं के ताल मौसमी रिवा...