खोद कर उसे ही हम विज्ञान हो गए।
विकास-विकास करते-करते,
न जाने हम कब शैतान हो गए।
आज ज़िन्दगी उम्मीदों की रेत सी,
फिसलकर विज्ञान श्मशान हो गए।
'कृष्णा'
सफ़र के रास्ते जितने कठिन होंगे, मंज़िल उतनी शानदार होगी। हाँ! रुकना मत, चलते रहो, चलते रहो मुसलसल। Twitter @kkpbanaras
ये दिसंबर तो अब तलक रुका है तुमने ही साथ छोड़ दिया! शायद प्रेम का ताल सूख गया होगा पर वक़्त से पहले कैसे? हो सकता है अश्रुओं के ताल मौसमी रिवा...
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