गिनती बढ़ रही, आँखें चढ़ रही हैं,
तुम लखनऊ-बनारस में हो! कहकर मुस्कुराते क्यों नहीं?
आग लगाकर ख़ुद के गुलशन में,
ओ माली चोर-चोर चिल्लाते नहीं।
तुम आए नहीं, गँगा माँ ने बुलाया था,
तो बिखरे चेहरों को टटोलने आते क्यों नहीं?
तुम्हें सत्ता कौन देगा अबकी बार,
ये सोच मगरमच्छ के आँसू बहाते क्यों नहीं?
'कृष्णा'
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