शुक्रवार, 23 दिसंबर 2022

डिअर दिसंबर

ये दिसंबर तो अब तलक रुका है
तुमने ही साथ छोड़ दिया!
शायद प्रेम का ताल सूख गया होगा
पर वक़्त से पहले कैसे?
हो सकता है
अश्रुओं के ताल
मौसमी रिवाज़ों से मुक्त हों
हो सकता है
प्रेम की गलियारों का
कोई और केलिन्डर हो
पर जो भी हो
वक़्त से पहले वक़्त का गुज़र जाना
ठीक वैसा होता है जैसे
किसी बच्चे को 
माँ से छीन लिया जाए।
- कृष्णा

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