काश! उसके लिए जीता, अपने लिए मर जाता।
कल सामने मंज़िल थी, पीछे मेरी आवाज़ें।
चलता तो तुमसे बिछड़ जाता,
रुकता तो मेरा सफ़र छूट जाता।
मैं नज़रबंद गलियों मुस्कुरा रहा था,
बिन मंज़िल पर सफ़र तो किए जा रहा था।
उन गलियों में ख़ुश भले न था 'कृष्णा' , था तो सही!
काश वहीं होता! , एक शाम तो बचा लेता!
एक शाम तो बचा लेता, एक रोज़ तो घर जाता!
'कृष्णा'
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