लगता है कहीं और भी तबाह हुआ हूँ मैं।
मैं ख़ुद को मयस्सर था, मगर ख़ुद को मिल न सका मैं।
सूरज-चाँद के उफ्फुक़ होते हैं, मंज़िल नहीं,
सो उगता रहा,डूबता रहा, ढलता रहा मैं।
एक शख़्स था लेकिन कोई शख़्स न था मैं।
न आँखे मेरी खुली न उन आँखों में खुला मैं।
तलाश
तलाश
तलाश
हर किसी के तलाश में 'कृष्णा' कभी ख़ुद का न हुआ मैं।
'कृष्णा'
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