मंगलवार, 25 मई 2021

सच एक ढोंग

समाज की परिकल्पना करना एकतरफा होता काश!
कुम्हार माटी को सानकर भी कुम्हार न कहलाता काश!
ज़मीन के टुकड़े अपनों के टुकड़े न करते काश!
विश्वास को शब्द महज़ न कहते मन ही सब समझता काश!
प्रेम को ढोंग और ढोंगी को प्रेमी वो न समझता काश!
रक्त को द्रव, धन को हिसाब न समझते काश!

चलो माना! मैं ढोंगी हूँ, तुम यूँही रहो निःस्वार्थ।
'कृष्णा'

शुक्रवार, 14 मई 2021

परशुराम जन्मोत्सव

हे गुरुओं के गुरु, विप्र शिरोमणि परशुराम!
अपनी अमरता तुम्हें दिखाना होगा।

धर्म की रक्षा के ख़ातिर अब,
तुम्हें पुनः परशु उठाना होगा।

सत्य तड़प रहा कलयुग में,
शिक्षा की बोली लगती है,

जाति-धर्म और ऊँच-नीच से,
मानव की नस्लें बँटती है,

आरक्षण नामक काँटों से,
तलवार की नोख भी यहाँ कटती है।

हे महागुरु! है विष्णु अवतार!
तुम्हें पुनः रण में आना होगा।

21 बार क्षत्रियों की भाँति,
तुम्हें अधर्मियों का शीष उड़ाना होगा।

तुम भीष्म गुरु तुम द्रोण गुरु,
तुमने राधे पुत्र को शिक्षा दी,

सर्वश्रेष्ठ का गुरुर तोड़ने,
तुमने कर्ण को दीक्षा दी।

है महागुरु! है दानवीर गुरु!
तुम्हें ऊनी अमरता दिखाना होगा,

धर्म की रक्षा के ख़ातिर अब,
तुम्हें पुनः परशु उठाना होगा।
'कृष्णा'

गुरुवार, 13 मई 2021

आत्मा , मन , चेतना , व्यवहार

जिस प्रकार मनोविज्ञान ने सर्वप्रथम अपनी आत्मा का त्याग किया फिर मन का और फिर चेतना का त्याग किया और अंततः अपने व्यवहार को सँजोए हुए जीवित है। ठीक उसी प्रकार है मेरी यह जीवनी।
बचपन में बचपना का त्याग, किशोरावस्था में मित्र का त्याग और युवावस्था में प्रेम का त्याग। मनोविज्ञान के पास फिर भी व्यवहार बचा रह गया किन्तु मैं कुछ भी न सँजो सका।

गुरुवार, 6 मई 2021

ये जो है , मैं नहीं!

 तुम बिन जो है ये, वो मैं नहीं।

सच कहते हो तुम! मुझे तुम्हारी ख़बर नहीं।

शायद बेमौसम बारिश हो रही है,
कि नासमझ बूझ ले, पलकें उसकी रो रही है।

आँखों का बिन सपनों की, जैसे क़ीमत कोई नहीं,
तेरे बिन मैं वैसे हूँ, ताक़त मेरी कोई नहीं।
गहरा है एक दर्दों का, साँसे जिसको समझे हैं,
तुम्हारी सूरत मरहम है, दूजी राहत कोई नहीं।

सच कहते हो तुम! मुझे तुम्हारी ख़बर नहीं।
तुम बिन जो है ये, वो मैं नहीं, क़तई मैं नहीं।

सोमवार, 3 मई 2021

बग़ावत

तुम जो पढ़ रहे हो!
खून के धब्बे हैं शामिल इनमें।

आओ चलो बग़ावत करें।
खुल कर ये एलान होना चाहिए-

जहाँ रात न होती हो,
आशिक़ों के लिए,
वो जहान होना चाहिए।

डिअर दिसंबर

ये दिसंबर तो अब तलक रुका है तुमने ही साथ छोड़ दिया! शायद प्रेम का ताल सूख गया होगा पर वक़्त से पहले कैसे? हो सकता है अश्रुओं के ताल मौसमी रिवा...