बचपन में बचपना का त्याग, किशोरावस्था में मित्र का त्याग और युवावस्था में प्रेम का त्याग। मनोविज्ञान के पास फिर भी व्यवहार बचा रह गया किन्तु मैं कुछ भी न सँजो सका।
सफ़र के रास्ते जितने कठिन होंगे, मंज़िल उतनी शानदार होगी। हाँ! रुकना मत, चलते रहो, चलते रहो मुसलसल। Twitter @kkpbanaras
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डिअर दिसंबर
ये दिसंबर तो अब तलक रुका है तुमने ही साथ छोड़ दिया! शायद प्रेम का ताल सूख गया होगा पर वक़्त से पहले कैसे? हो सकता है अश्रुओं के ताल मौसमी रिवा...
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जल्दबाजी, हड़बड़ी हमें हमसे अलग करने में कोई कसर नहीं छोड़ता। मुझे मिला शहर से लगभग सबकुछ। डिग्री, दोस्त, और एक नई ज़िन्दगी। मेरे अन्दर बनारस शह...
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वो विशालकाय जंगल जो जल कर ख़ाक हुई, ऊँचे मीनार बने वहाँ, हरे वृक्षों की राख हुई। हुए दफ़्न जो उस भयावह आग में, सुकूँ से हम भी कहाँ रह पाएँगे। ...
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पाला जिसने बड़े इत्मिनान से, खोद कर उसे ही हम विज्ञान हो गए। विकास-विकास करते-करते, न जाने हम कब शैतान हो गए। आज ज़िन्दगी उम्मीदों की रेत सी, ...
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