गुरुवार, 13 मई 2021

आत्मा , मन , चेतना , व्यवहार

जिस प्रकार मनोविज्ञान ने सर्वप्रथम अपनी आत्मा का त्याग किया फिर मन का और फिर चेतना का त्याग किया और अंततः अपने व्यवहार को सँजोए हुए जीवित है। ठीक उसी प्रकार है मेरी यह जीवनी।
बचपन में बचपना का त्याग, किशोरावस्था में मित्र का त्याग और युवावस्था में प्रेम का त्याग। मनोविज्ञान के पास फिर भी व्यवहार बचा रह गया किन्तु मैं कुछ भी न सँजो सका।

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