तुम बिन जो है ये, वो मैं नहीं।
सच कहते हो तुम! मुझे तुम्हारी ख़बर नहीं।
शायद बेमौसम बारिश हो रही है,
कि नासमझ बूझ ले, पलकें उसकी रो रही है।
आँखों का बिन सपनों की, जैसे क़ीमत कोई नहीं,
तेरे बिन मैं वैसे हूँ, ताक़त मेरी कोई नहीं।
गहरा है एक दर्दों का, साँसे जिसको समझे हैं,
तुम्हारी सूरत मरहम है, दूजी राहत कोई नहीं।
सच कहते हो तुम! मुझे तुम्हारी ख़बर नहीं।
तुम बिन जो है ये, वो मैं नहीं, क़तई मैं नहीं।
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