ऊँचे मीनार बने वहाँ, हरे वृक्षों की राख हुई।
हुए दफ़्न जो उस भयावह आग में,
सुकूँ से हम भी कहाँ रह पाएँगे।
देंगे बददुआएँ नस्लें उनकी,
चौखट हमारी भी सूनी रह जाएगी।
वो न प्रेत हैं न भूत हैं
आँख के अंधे हम हैं,
वो तो प्रकृति के दूत हैं।
जो कल मारा गया हाथ हमारे,
कल पिंजडे में हम उसे ही पालेंगे।
2 गज का चिड़ियाघर होगा,
हर जगह उनके आज़ादी पर ताले होंगे।
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