शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2021

मोह

इस मरणशील संसार में हम जो भी पाते हैं सब हासिल करना होता है, फिर चाहे वस्तु हो या लोग।
ये मोह है जो इन हासिल तथ्यों को एहसासों से जोड़ देता है और फिर हम कहने लगते हैं कि हमने ये खो दिया, इसे खो दिया, उसे खो दिया............
लेकिन अगर आंतरिक तौर पर देखा जाए तो यह बिल्कुल भी सत्य नहीं है।
दरअसल जिसे हम खोना कहकर ख़ुद में कमी को दर्शाते हैं वो ही हमारी परिपूर्णता को दर्शाता है कि हम बिल्कुल भी अधूरे नहीं हैं इस धरा पर और न ही हमारे जीवन की प्रकाश कम होता है किसी के बग़ैर ।हाँ दीया फड़फड़ाता ज़रूर है लेकिन एक दीये को छोटी सी हवा थोड़ी न बुझा पाएगी।
हम मज़बूत हैं, मज़बूत रहेंगे। कमज़ोर दिखना तो महज नाटक है।

वीर सावरकर

काल स्वयं मुझ से डरा है, 
मैं काल से नहीं, 

मैं बार-बार लौट आया हूँ, 
और फिर भी मैं जीवित हूँ। 
हारी मृत्यु है, मैं नहीं।
- वीर सावरकर

गुरुवार, 25 फ़रवरी 2021

बनारस love

"पल हर पल मुझे झकझोरे रखता है, मेरे साथ मेरा कलम भी जीता है।"
नवम्बर की शाम वाली ठण्ड में रेलवे स्टेशन के वेटिंग रूम में लगी कुर्सियाँ रेलगाड़ी की प्रतीक्षा को सहज बनाने में कारगर लग रही थीं। आदतन मोबाइल उठाया और व्हाट्सएप्प किया "मैं आज ही वापिस बनारस आ रहा हूँ।
हालाँकि मैं वहाँ पहुँच कर उससे अचानक मिलना चाहता था।

"अचानक से मिलने वाली खुशियाँ हमारे अंदर के मुस्कान को बाहर निःस्वार्थ रूप से ले आती है।"

रिप्लाई में एक इमोजी आया 🤗। वो जो उस पार से मुझे हर बात पर अपने इमोजी भेज रही थी उसका चेहरा भी एकदम से मुस्काता हुआ इमोजी जैसा ही है। हम दोनों के नाम के अक्षर भले ही बराबर हैं लेकिन करतूत एकदम विपरीत। वो ठहरी एकदम उपद्रवी और मैं एकदम शान्त। कई बार तो जब मैं कुछ सोच रहा होता हूँ तो अचानक कान में फूँक के भाग जाती है और भौंह चढ़ा कर डराओ तो मासूम बच्चे की तरह मुँह बना के खड़ी हो जाती। अब भला कौन ही डाँटे!

सर्दियों में ट्रेनों की चाल में सुस्ती से गुस्सा तो आ ही रहा था लेकिन ये सोच कर भी निश्चिन्त था कि उतनी सुबह ठण्ड में पहुँच कर करूँगा भी क्या?

"पता नहीं अक्सर क्यों ऐसा होता है कि हमें किसी चीज़ का बेसब्री से इंतजार हो तो समय ख़ुद को और विस्तार कर लेती है।"
इस सिकुड़ा देने वाले ठंड में सुकून तो सफ़र खत्म होने के बाद ही मिला। सफ़र के बाद कहना लाज़मी नहीं होगा क्योंकि उससे मिलना, उसमें मिल जाने जैसा था। हफ़्तों बाद के दीदार में मानो स्वयं महादेव के जटा में गँगा आकर लिपट गई हो,कुछ ऐसा प्रतीत हुआ। मैं इन सब में खोया ही था कि उसने भर लिया आलिंगन में।
बस एक शहर को उसके बाशिन्दे से ज्यादा और क्या चाहिए?
मैं चाह कर भी उसे नहीं बता पाता कि तुम अब तुम नहीं रही हो मेरे जीवन में, हम हो चुके हैं। मुझे पता है कि उसे मेरे सारे एहसासों की ख़बर है लेकिन ये शब्दों के जाल फेंकने में मैं कैसे असमर्थ हो गया ये सोचने वाली बात है।
शब्दों की सीमा को देखते हुए मैं ये कहना चाहूँगा कि दूरियाँ ख़त्म हो जाएँगी बस ख़ुद को बनारसी और अपने इश्क़ को बनारस की संज्ञा दो तो।
#KkpBanaRas

रविवार, 21 फ़रवरी 2021

खूबसूरत

चले जो आंधी वो तिनका तिनका 

बिखरे आसिया, गम नही हैं।


जो तोड़ दे मेरे हौसलो को  

अभी वो तूफाँ उठा नहीं है।

शनिवार, 20 फ़रवरी 2021

#kkpbanaras

काश हमारे जज़्बात भी कोई छाप पाता!
काश हमारी फीलिंग्स के कोई स्टेटस बना पाता!
ख़ैर हमको पता है कि तुमसे, तुमसे और तुमसे भी ये न पाएगा।
हमारे ज़हरीले शब्द जीवन रूपी वृक्ष को झुलसाने के परिणाम निकले द्रव ही तो है।
हमने तो कइयों को लिखा है, हमें लिखने वाला कलम बनते-बनते रह गया।
न ही हमें आवश्यकता है किसी के शब्दों की और उसके शब्दों में सिमट जाने की।
#KkpBanaRas

मंगलवार, 16 फ़रवरी 2021

फ़क़त दिल

फ़क़त मेरे दिल को मत निचोड़ियेगा,

प्रेम हो  घात हो या हो प्रहार

मेरा किरदार भी ख़ुद में पाक है।

सोमवार, 15 फ़रवरी 2021

रविवार, 14 फ़रवरी 2021

इश्क़

ज़रूरी नहीं कि
हर हाल में इश्क़ जताया जाए,

कुछ पल के लिए
गिरे हुए ख़ुद को भी उठाया जाए।

इश्क़ है और रहेगा
ज़रूरी नहीं है कि इश्क़ जताया जाए।












डिअर दिसंबर

ये दिसंबर तो अब तलक रुका है तुमने ही साथ छोड़ दिया! शायद प्रेम का ताल सूख गया होगा पर वक़्त से पहले कैसे? हो सकता है अश्रुओं के ताल मौसमी रिवा...