ये मोह है जो इन हासिल तथ्यों को एहसासों से जोड़ देता है और फिर हम कहने लगते हैं कि हमने ये खो दिया, इसे खो दिया, उसे खो दिया............
लेकिन अगर आंतरिक तौर पर देखा जाए तो यह बिल्कुल भी सत्य नहीं है।
दरअसल जिसे हम खोना कहकर ख़ुद में कमी को दर्शाते हैं वो ही हमारी परिपूर्णता को दर्शाता है कि हम बिल्कुल भी अधूरे नहीं हैं इस धरा पर और न ही हमारे जीवन की प्रकाश कम होता है किसी के बग़ैर ।हाँ दीया फड़फड़ाता ज़रूर है लेकिन एक दीये को छोटी सी हवा थोड़ी न बुझा पाएगी।
हम मज़बूत हैं, मज़बूत रहेंगे। कमज़ोर दिखना तो महज नाटक है।
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