सोमवार, 15 फ़रवरी 2021

अँधेरा



कह दो अन्धेरे से कि 
बचपन बीत गई,

अब डर नहीं
सुकून मिलता है तुमसे।











कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

डिअर दिसंबर

ये दिसंबर तो अब तलक रुका है तुमने ही साथ छोड़ दिया! शायद प्रेम का ताल सूख गया होगा पर वक़्त से पहले कैसे? हो सकता है अश्रुओं के ताल मौसमी रिवा...