काल स्वयं मुझ से डरा है,
मैं काल से नहीं,
मैं बार-बार लौट आया हूँ,
और फिर भी मैं जीवित हूँ।
हारी मृत्यु है, मैं नहीं।
- वीर सावरकर
सफ़र के रास्ते जितने कठिन होंगे, मंज़िल उतनी शानदार होगी। हाँ! रुकना मत, चलते रहो, चलते रहो मुसलसल। Twitter @kkpbanaras
ये दिसंबर तो अब तलक रुका है तुमने ही साथ छोड़ दिया! शायद प्रेम का ताल सूख गया होगा पर वक़्त से पहले कैसे? हो सकता है अश्रुओं के ताल मौसमी रिवा...
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