बुधवार, 24 मार्च 2021

अधूरा चाँद

जैसे आधा चाँद दिखता है न वैसा ही हूँ मैं, जो बस दिखने में आधा है लेकिन है तो पूरा ही।
बहुत ख़ुश हूँ कि कोई है मेरा, मुझे सिर्फ मुझे समझने वाला।
ये भरम टूट जाना ही इस चाँद को कभी पूरा होकर ठहरने नहीं देता।
सामने ये जो निगाहें झुकी पड़ी हैं
इस चाँद ने थे इनके कभी सदके उतारे।

तेरा हाथ कल तक मेरे हाथ में था,
दिल तेरा धड़कता है अभी दिल में हमारे।

शामों को अब न निकलना घरों से,
दीदार-ए-हुश्न न हो जाए तुम्हारा।
कहीं अब मुलाक़ात हो जाए हमसे,
चुराकर नज़र को मुक़र जाना हमसे।
#kkpbanaras

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