मेरे दो दशकों के अनुभव कहते हैं कि हम चाहे जैसे भी हों, जिस भी हाल में हों, हमें एक वैयक्तिक कलाकार बनाना होता है खुद को सामने वाले कि ख़ुशी के लिए।
गुलाब की ढकार निकालनी पड़ती है , धतूरे को निगल कर।
यह धतूरा कुछ पल के लिए हमारे अपनों को संतुष्ट तो कर देता है परन्तु यही एक कारण बनता है ख़ुद को बर्बाद करने का।
बस यही एक स्थिति का रूप ले लेती है कि हम रिश्तों से दूर होने लगते हैं या कहलो हर शख्स पर विश्वास खोने लगते हैं। बस ख़ुद के मुरीद ही बनने पर मजबूर हो जाते हैं। यही स्थिति एक सीधे और सुलझे धागे में गाँठ जड़ने लगती है, जो विकराल रूप लेकर पूर्व सिंचित प्रेम और भाव के धागे को तोड़ देती है।
#KKPBANARAS
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