सोमवार, 21 दिसंबर 2020

तुम्हारी यादों का शहर

तुम्हारे शहर की बात ही अलग है। कितना भरा है न भीड़ से! एकदम लबालब। कहीं ट्रैफिक की आवाज़ तो कहीं अलहड़पन का शोर। बहुत रौनक है इस शहर में लेकिन सब सूना लगता है जब साथ तुम न हो। वो दुकानें, वो मॉल, वो घाट आज भी वैसा ही था लेकिन खिलखिलाहट नहीं मिली कहीं वैसी जैसी तुम्हारे साथ घूमने पर मिला करती है। भला हो भी कैसे? सब तो तुम्हें मेरे साथ देखकर ही मुस्कराते थे न! पता है चाचा के गोलगप्पे खिलाने के अंदाज़ भी आज अलग ही था, उनको पता है कि मुझे मूली पसन्द नहीं फिर भी मुझे अकेला देखकर उन्होंने मुझे मूली दे दी, मैंने मना भी नहीं किया आज, शायद उनको अन्दाज़ा ही न हुआ होगा कि मैं वही हूँ जो रोज तुम्हारे साथ खिलखिलाते हुए गोलगप्पे खाया करता था या शायद मेरी पहचान सिर्फ तुम हो, जिसके न होने से सब मुझसे रूठे से थे। अब भला दरख़्त से अलग हुए पत्ते को कौन पसन्द ही करता है? शायद ख़ुद दरख़्त भी नहीं! मैंने सबको वादा किया है उस खिलखलाहट को लौटाने को। क्या सच में इतना इत्मिनान है एक दिन बिना तुम्हारे? मुझे ये इत्मिनान क़तई बर्दास्त नहीं। मुझे तो वो सुकून चाहिए जो सच में वरुणा को अस्सी से मिलाकर बनारस बना दे। बिना बनारस के ये दोनों नदियाँ नाले में तब्दील हो गई हैं। मेरे साहित्य का श्रृंगार, करुण और वात्सल्य का समागम तो तुम ही हो, फिर क्यों कहीं और भटकते रहना है। वैसे हमारे बीच कोई रिक्ति नहीं जहाँ कुछ समाहित हो सके लेकिन प्रेम रूपी डोर को जगह की कहाँ ज़रूरत? ये तो उस फेवी क्विक की तरह है जो जोड़कर रखती तो है पर दिखाई नहीं देती। बताओ न तुम मैं सच कह रहा हूँ न! अच्छा ये बताओ आज का दिन कैसा रहा तुम्हारा? क्या तुम्हारी गलियाँ भी ढूँढ रही थी मुझे? क्या तुम्हारा फोन भी बेताब था मेरी आवाज़ को सुनने को? बहुत परेशान थी न! मैं भी था। तुम्हारी जो मेरे लिए परवाह है न ये मुझे बहुत तड़पाती है और  प्रेम तो फड़फड़ाहट को और गति दे ही देता है। मैं चाहता हूँ बेपरवाह रहो तुम बिल्कुल अल्हड़ मिज़ाजी। ठीक वैसे ही जैसा तुम्हारा शहर है। चलो मुझे मेरी पसन्दीदा झप्पी दो। बाएँ हाथ को दाएँ कन्धे पर और दाएँ हाथ को बाएँ कन्धे पर रखकर टाइट वाली झप्पी। सुनो! प्रेम में मैं स्वार्थी हो गया हूँ इसलिए सिर्फ अपना ख़्याल रखो सिर्फ मेरे लिए। जल्द ही हमारी मुलाक़ात होगी। "बशीर बद्र " की वो पँक्तियाँ सुनी होगी तुमने। "मुसाफिर हैं हम, मुसाफिर हो तुम। एक मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी"।

#KkpBanaRas

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