सफ़र के रास्ते जितने कठिन होंगे, मंज़िल उतनी शानदार होगी। हाँ! रुकना मत, चलते रहो, चलते रहो मुसलसल। Twitter @kkpbanaras
सोमवार, 28 दिसंबर 2020
बनारस से इश्क़।
शुक्रवार, 25 दिसंबर 2020
यादों के पन्ने
मंगलवार, 22 दिसंबर 2020
प्यार
जो ख़ुद अधूरा होकर जीवन को पूरा करता है, वही है प्यार। वैसे प्यार के बारे में कई सारे मतों को सुना है। कुछ का मानना है कि प्यार एक ही बार होता है तो कुछ का मानना है कि प्यार दोबारा भी हो सकता है। बड़े असमंजस के बाद मैंने फ़ैसला किया अपने अतीत के पन्नों को पलटने का। मुझे ज्ञात हुआ कि प्यार तो आदि से शुरू होकर अनन्त तक चलने वाली अर्थात सर्वत्र विराजमान रहने वाली काया है,जिसे चाह कर भी हटाया नहीं जा सकता और न ही बनाया जा सकता। वो विज्ञान में कहते हैं न कि " energy can't be created nor be destroyed." ठीक उसी तरह है प्यार। मैं किसी मत का कटाक्ष नहीं करता और न ही मेरी हैसियत है उतनी, लेकिन अपने अनुभव को साझा करते हुए मैं बस यही कहना चाहता हूँ कि जिस केंद्र बिन्दु से हमें आत्म संतुष्टि और आत्म प्रेम की भावना मिलती है वहीं प्यार है। प्यार एक बार नहीं हज़ार नहीं लाख नहीं वरन अनन्त तक होते रहने वाली दशा है। अब देख लो आजकल मोबाइल नामक यंत्र से मन को बहुत संतुष्टि मिलती है। क्या अपने मोबाइल को दूसरों के पास देखना चाहते हो? कितनी हिफाज़त करते हो न! शायद ख़ुद से भी अधिक। इसीलिए मुझे यह कहने में थोड़ी-सी भी झिझक न हुई और मैंने अपने मन की बात उढेल दी। ख़ैर मुझे भी बहुत प्यार है अपने परिवार से, अपने मोबाइल से, अपने दद्दा से; (जो कि मुझसे 2 साल पहले मिले थे लेकिन सम्बन्ध ऐसा मानो सदियों से नाता हो हमारा), अपने आप से और हाँ तुमसे। बेपनाह मोहब्बत है, मैं कभी-कभी सोचता हूँ कि तुम, तुम और तुम न होते तो मेरा क्या होता? इस जहान में मैं कभी आत्म संतुष्टि न पाता। ख़ैरियत है कि तुम,तुम और तुम मेरे जीवन में हो प्यार बनकर। बहुत प्यार करता है तुमसे तुम्हारा कृष्णा। सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा कृष्णा।
#KkpBanaRas
सोमवार, 21 दिसंबर 2020
तुम्हारी यादों का शहर
तुम्हारे शहर की बात ही अलग है। कितना भरा है न भीड़ से! एकदम लबालब। कहीं ट्रैफिक की आवाज़ तो कहीं अलहड़पन का शोर। बहुत रौनक है इस शहर में लेकिन सब सूना लगता है जब साथ तुम न हो। वो दुकानें, वो मॉल, वो घाट आज भी वैसा ही था लेकिन खिलखिलाहट नहीं मिली कहीं वैसी जैसी तुम्हारे साथ घूमने पर मिला करती है। भला हो भी कैसे? सब तो तुम्हें मेरे साथ देखकर ही मुस्कराते थे न! पता है चाचा के गोलगप्पे खिलाने के अंदाज़ भी आज अलग ही था, उनको पता है कि मुझे मूली पसन्द नहीं फिर भी मुझे अकेला देखकर उन्होंने मुझे मूली दे दी, मैंने मना भी नहीं किया आज, शायद उनको अन्दाज़ा ही न हुआ होगा कि मैं वही हूँ जो रोज तुम्हारे साथ खिलखिलाते हुए गोलगप्पे खाया करता था या शायद मेरी पहचान सिर्फ तुम हो, जिसके न होने से सब मुझसे रूठे से थे। अब भला दरख़्त से अलग हुए पत्ते को कौन पसन्द ही करता है? शायद ख़ुद दरख़्त भी नहीं! मैंने सबको वादा किया है उस खिलखलाहट को लौटाने को। क्या सच में इतना इत्मिनान है एक दिन बिना तुम्हारे? मुझे ये इत्मिनान क़तई बर्दास्त नहीं। मुझे तो वो सुकून चाहिए जो सच में वरुणा को अस्सी से मिलाकर बनारस बना दे। बिना बनारस के ये दोनों नदियाँ नाले में तब्दील हो गई हैं। मेरे साहित्य का श्रृंगार, करुण और वात्सल्य का समागम तो तुम ही हो, फिर क्यों कहीं और भटकते रहना है। वैसे हमारे बीच कोई रिक्ति नहीं जहाँ कुछ समाहित हो सके लेकिन प्रेम रूपी डोर को जगह की कहाँ ज़रूरत? ये तो उस फेवी क्विक की तरह है जो जोड़कर रखती तो है पर दिखाई नहीं देती। बताओ न तुम मैं सच कह रहा हूँ न! अच्छा ये बताओ आज का दिन कैसा रहा तुम्हारा? क्या तुम्हारी गलियाँ भी ढूँढ रही थी मुझे? क्या तुम्हारा फोन भी बेताब था मेरी आवाज़ को सुनने को? बहुत परेशान थी न! मैं भी था। तुम्हारी जो मेरे लिए परवाह है न ये मुझे बहुत तड़पाती है और प्रेम तो फड़फड़ाहट को और गति दे ही देता है। मैं चाहता हूँ बेपरवाह रहो तुम बिल्कुल अल्हड़ मिज़ाजी। ठीक वैसे ही जैसा तुम्हारा शहर है। चलो मुझे मेरी पसन्दीदा झप्पी दो। बाएँ हाथ को दाएँ कन्धे पर और दाएँ हाथ को बाएँ कन्धे पर रखकर टाइट वाली झप्पी। सुनो! प्रेम में मैं स्वार्थी हो गया हूँ इसलिए सिर्फ अपना ख़्याल रखो सिर्फ मेरे लिए। जल्द ही हमारी मुलाक़ात होगी। "बशीर बद्र " की वो पँक्तियाँ सुनी होगी तुमने। "मुसाफिर हैं हम, मुसाफिर हो तुम। एक मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी"।
#KkpBanaRas
डिअर दिसंबर
ये दिसंबर तो अब तलक रुका है तुमने ही साथ छोड़ दिया! शायद प्रेम का ताल सूख गया होगा पर वक़्त से पहले कैसे? हो सकता है अश्रुओं के ताल मौसमी रिवा...
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जल्दबाजी, हड़बड़ी हमें हमसे अलग करने में कोई कसर नहीं छोड़ता। मुझे मिला शहर से लगभग सबकुछ। डिग्री, दोस्त, और एक नई ज़िन्दगी। मेरे अन्दर बनारस शह...
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वो विशालकाय जंगल जो जल कर ख़ाक हुई, ऊँचे मीनार बने वहाँ, हरे वृक्षों की राख हुई। हुए दफ़्न जो उस भयावह आग में, सुकूँ से हम भी कहाँ रह पाएँगे। ...
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पाला जिसने बड़े इत्मिनान से, खोद कर उसे ही हम विज्ञान हो गए। विकास-विकास करते-करते, न जाने हम कब शैतान हो गए। आज ज़िन्दगी उम्मीदों की रेत सी, ...