शुक्रवार, 23 दिसंबर 2022

डिअर दिसंबर

ये दिसंबर तो अब तलक रुका है
तुमने ही साथ छोड़ दिया!
शायद प्रेम का ताल सूख गया होगा
पर वक़्त से पहले कैसे?
हो सकता है
अश्रुओं के ताल
मौसमी रिवाज़ों से मुक्त हों
हो सकता है
प्रेम की गलियारों का
कोई और केलिन्डर हो
पर जो भी हो
वक़्त से पहले वक़्त का गुज़र जाना
ठीक वैसा होता है जैसे
किसी बच्चे को 
माँ से छीन लिया जाए।
- कृष्णा

शनिवार, 25 सितंबर 2021

बचपन की साइंस

बचपन की साइंस और बाद को जियोग्राफी न पढ़ा होता तो बेशक़ आज कहता कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर नहीं घूम रही है।
दरअसल काले अक्षरों से परे भी एक दुनिया है जो अनुमान से चला करती है, उसमें न ही सेकण्ड के काँटे होते हैं और न ही भागदौड़।
ये इत्मिनान से चलने वाली दुनिया है।
इसे मैं अलग दुनिया की संज्ञा इसलिए देना चाहता हूँ क्योंकि मेरा संज्ञान मुझे अपडेट नहीं कर पा रहा कि कोई ऐसी जगह बची होगी जहाँ सूरज उगने से पूर्व दिन की शुरुआत और ढलते मंझते ही रात। यहाँ शाम भी नहीं हुआ करती।
इस गोले पर भी ये दुनिया हुआ करती थी, शायद तब, जब हम पेड़ों से घिरे होते थे टावरों और मीनारों से नहीं।

आज जब-भी घर से कदम बाहर निकालो तो लगता है वे दुनिया कहाँ सुबह से शाम तक तो हम ही घूम रहे हैं, जल रहे हैं, तप रहे हैं। इस तरह कि मानो किसी सूर्य के चारों को हम चक्कर लगा रहे हों।
लेकिन करें भी तो क्या? पहले तो बचपन के साइंस ने फिर बाद के जियोग्राफी ने इस क़दर ज्ञान दिया कि हम स्थिर और दुनिया ही घूमने लगी।

मुझे लगता है कभी-कभी फुरसत वाली दुनिया को भी समय दे देना चाहिए, कभी सटीकता को छोड़ अनुमान को एकटक निहार लेना चाहिए।
'कृष्णा'

मंगलवार, 22 जून 2021

विशालकाय जंगल

वो विशालकाय जंगल जो जल कर ख़ाक हुई,
ऊँचे मीनार बने वहाँ, हरे वृक्षों की राख हुई।

हुए दफ़्न जो उस भयावह आग में,
सुकूँ से हम भी कहाँ रह पाएँगे।
देंगे बददुआएँ नस्लें उनकी,
चौखट हमारी भी सूनी रह जाएगी।

वो न प्रेत हैं न भूत हैं
आँख के अंधे हम हैं,
वो तो प्रकृति के दूत हैं।

जो कल मारा गया हाथ हमारे,
कल पिंजडे में हम उसे ही पालेंगे।
2 गज का चिड़ियाघर होगा,
हर जगह उनके आज़ादी पर ताले होंगे।

सोमवार, 21 जून 2021

Music Day

संसार की सारी ध्वनियाँ जब ख़ामोश हो जाती है और ख़ामोशियाँ भी जब घुटने टेकने लगती है,
तब झनक उठती है संगीत
आत्मा को पुनर्जीवित करने
एक सुरंग से निकलकर।
धकेल देती है हमें उस मौन से कोषों दूर जो निगल ही चुका था लगभग हमें।
कहते हैं 
When Word fails Music Speaks.
Happy World Music Day.

मंगलवार, 25 मई 2021

सच एक ढोंग

समाज की परिकल्पना करना एकतरफा होता काश!
कुम्हार माटी को सानकर भी कुम्हार न कहलाता काश!
ज़मीन के टुकड़े अपनों के टुकड़े न करते काश!
विश्वास को शब्द महज़ न कहते मन ही सब समझता काश!
प्रेम को ढोंग और ढोंगी को प्रेमी वो न समझता काश!
रक्त को द्रव, धन को हिसाब न समझते काश!

चलो माना! मैं ढोंगी हूँ, तुम यूँही रहो निःस्वार्थ।
'कृष्णा'

शुक्रवार, 14 मई 2021

परशुराम जन्मोत्सव

हे गुरुओं के गुरु, विप्र शिरोमणि परशुराम!
अपनी अमरता तुम्हें दिखाना होगा।

धर्म की रक्षा के ख़ातिर अब,
तुम्हें पुनः परशु उठाना होगा।

सत्य तड़प रहा कलयुग में,
शिक्षा की बोली लगती है,

जाति-धर्म और ऊँच-नीच से,
मानव की नस्लें बँटती है,

आरक्षण नामक काँटों से,
तलवार की नोख भी यहाँ कटती है।

हे महागुरु! है विष्णु अवतार!
तुम्हें पुनः रण में आना होगा।

21 बार क्षत्रियों की भाँति,
तुम्हें अधर्मियों का शीष उड़ाना होगा।

तुम भीष्म गुरु तुम द्रोण गुरु,
तुमने राधे पुत्र को शिक्षा दी,

सर्वश्रेष्ठ का गुरुर तोड़ने,
तुमने कर्ण को दीक्षा दी।

है महागुरु! है दानवीर गुरु!
तुम्हें ऊनी अमरता दिखाना होगा,

धर्म की रक्षा के ख़ातिर अब,
तुम्हें पुनः परशु उठाना होगा।
'कृष्णा'

गुरुवार, 13 मई 2021

आत्मा , मन , चेतना , व्यवहार

जिस प्रकार मनोविज्ञान ने सर्वप्रथम अपनी आत्मा का त्याग किया फिर मन का और फिर चेतना का त्याग किया और अंततः अपने व्यवहार को सँजोए हुए जीवित है। ठीक उसी प्रकार है मेरी यह जीवनी।
बचपन में बचपना का त्याग, किशोरावस्था में मित्र का त्याग और युवावस्था में प्रेम का त्याग। मनोविज्ञान के पास फिर भी व्यवहार बचा रह गया किन्तु मैं कुछ भी न सँजो सका।

डिअर दिसंबर

ये दिसंबर तो अब तलक रुका है तुमने ही साथ छोड़ दिया! शायद प्रेम का ताल सूख गया होगा पर वक़्त से पहले कैसे? हो सकता है अश्रुओं के ताल मौसमी रिवा...